* Many and One *…
* Oneness & Unity of Brahman *...
(* एक और अनेेक *….)
(* एकता और ब्रह्म की एकता *…)...
Brahman is One,
Not quantifiably, but in essence.
(ब्रह्म एक है,
संख्यात्मक रूप से नही बल्कि सार रूप में…)
“Numerical Oneness”, would either shut-out plurality, or would be a universal and divisible oneness with Many as its parts.
( “संख्यात्मक एकता”, या तो बहुलता को बाहर कर देगी, या तो वह एक बहुलवादी और विभाज्य एकता होगी जिसमें अनेक भाग शामिल होगा…)
“THAT” is not the Unity of Brahman, which can neither be lessened, nor be increased, nor be divided.
( वह ब्रह्म की एकता नहीं है, जिसे न घटाया जा सकता है, न बढ़ाया जा सकता है, और न ही विभाजित किया जा सकता है…)
“The Many” in the universe, are sometimes called by people as parts of the Universal Brahman saying that, “ like all these waves are parts of the sea itself.!..”
( ब्रह्माण्ड के अनेकों को, लोग कभी-कभी सार्वभौमिक ब्रह्म (क्षर ब्रह्म) का अंश कहते हैं कि, “जैसे समुद्र की लहरें तो समुद्र के अंश ही हैं.!..”..।
But, in truth, all these waves are each of them ‘That sea itself.!..’;.. their variousness is viewed in front as forms and shapes, or, as mere external appearances caused by the sea’s changing flow.
लेकिन, वास्तव में, ये सभी लहरें वह समुद्र ही हैं l
उनकी विविधताएं केवल सामने का है, या सिर्फ समुद्र की गति के कारण बाहरी रूप या आकार में दिखाई देती हैं।
Just as, each and every object in the world is actually the entire world, except viewed as a different form and shape.!.. So too, each and every individual jiva is actually the integral-Brahman Itself, but is regarding himself and the world with ‘universal-consciousness’ as his focal-point.!..
जिस प्रकार ब्रह्मांड में प्रत्येक वस्तु वास्तव में संपूर्ण ब्रह्मांड ही है, एक अलग सामने वाले स्वरूप में.!.. इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति पूर्णतः ब्रह्म ही है, परन्तु, जो अपने आप को और विश्व को, ब्रह्मांडीय चेतना को केन्द्र बनाकर देख रहा है है.!..
NOTE:-
पूर्ण ब्रह्म परमात्मा "अद्वैत ब्रह्म हैं"..उनके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है;...वे ही थे ; वेे ही हैं ; और वे ही रहेंगे । यह सारा ब्रह्माण्ड उनके दिल (हृदय) में चल रहा है, अर्थात उनकी लीला है, या वे अपने लीला के साथ "अद्वैत" हैं । अन्य सभी सिद्धांत गलत नहीं हैं.!.. । लेकिन सच भी नहीं हं.!.। अपनी अपनी दृष्टिकोण से सभी सच है.!..
ब्रह्म का सत्य कौन बता सकता है?.."केवल ब्रह्म ही बता सकते हैं”.!.. ।
पूर्ण ब्रह्म परमात्मा (ब्रह्म) को परिभाषित करना उसे अपवित्र/मलिन करना है।…
“Has the Eternal Divine described HIMSELF?!..”
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